Yoga 1-14
Involuntary.
योग -१
१. यम
२. नियम
३. आसन
४. प्राणायाम
५. प्रत्याहार
६. धारणा
७. ध्यान
८. समाधि
यह हैं पतंजलि योग सूत्र के ८ अध्याय. साष्टांग योग सूत्र . योग की इस विधा का दूसरा प्रचलित नाम राज योग है जो योग की अन्य प्रचलित विधाओं में एक है , जैसे भक्ति योग , हठ योग , कर्म योग इत्यादि. योग की अन्य सारी विधाएँ इनसे कुछ न कुछ भिन्न हो सकती हैं, पर इन चारों से बिलकुल परे नहीं! उदाहरण के तौर पर, क्रिया योग.
क्रिया योग का दो स्वरूप है.
एक वो जिसे deathless guru बाबाजी से लाहरि महाशय के माध्यम से प्रदत्त माना जाता है, हालाँकि तंत्रिक पद्धति से उद्धृत इस विधा का प्रचार-प्रसार स्वामी शिवानन्द के द्वारा और बाद में स्वामी सत्यानंद परमहंस द्वारा किया गया.
क्रिया योग का एक दूसरा स्वरूप पतंजलि राज योग में उल्लिखित है जिसमें क्रिया योग की परिभाषा है ,
तप
स्वाध्याय
ईश्वर प्रणिधान
- यह क्रिया योग है.
(क्रमशः ............. )
योग -२
राज योग है जो योग , भक्ति योग , हठ योग , और कर्म योग अगर योग के सारे विधाओं को परिभाषित कर देते हैं तो जो अन्य योग की विधाओं का नाम हम सुनते आए है, वे क्या है? जैसे ज्ञान योग, मंत्र योग , स्वर योग , कुंडलिनी योग , लय योग , इत्यादि! यह प्रश्न अपने मन में उठ सकता है.
इस सम्बंध में एक बात स्पष्ट कर देना उचित होगा कि योग की हर विधा कहीं न कहीं एक दूसरे से जुड़ी हुई होती हैं , अंतर केवल उस आधारभूत संरचना का होता है जिस पर मूल रूप से योग की क्रियाएँ और सिद्धांत प्रतिपादित किए गए होते है .
ऐसी मान्यता है कि मनुष्य का स्वभाव इतना multi-faceted होता है कि जो प्रणाली एक व्यक्तित्व के लिए प्रभावी या उपयोगी हो सकती है वह दूसरे के लिए नहीं .
(क्रमशः ............. )
योग -३
किससे क्या जुड़े जो योग?
इस सरल प्रश्न का उत्तर भी सरल ही है, किंतु भ्रम की अवस्था से बाहर आना हमें अच्छा नहीं लगता . इसका सीधा कारण है conditioning जिसने क़ैद रहना हमारी आदत बन जाती है .
अगर योग की सरल परिभाषा हम ढूँढ लें या समझ लें तो इतने मात्र में बहुतेरे भ्रम जो हमने पाल रखे हैं, आप से आप हमारा साथ छोड़ जाएँगे.
अथ योगअनुशाशनमi (Ath Yoganushashanam) से पतंजलि योग सूत्र की शुरुआत होती है. इसमें संकेत यह है कि जिन सूत्रों कि महर्षि पतंजलि नें की है वह प्रारम्भिक कक्षा के अभ्यास के लिए नहीं बल्कि उनके लिए उपयुक्त है जिन्होंने प्रारम्भिक अवस्था को सिद्ध कर लिया हो.
अन्यथा राजयोग का मुख्य सूत्र समझना कठिन है जिसमें योग को परिभाषित करते हुए महर्षि कहते हैं योगह्चित्त्व्रितिनिरोदह (Yogaschittvritti nirodha).
यानी योग चित्त वृत्तियों के निरोध को कहते हैं . That is Yoga is about modifications of mind, to control it, to surmount it or to get over it is Yoga!
Isn't it an oversimplification of something known to be extremely puzzling, mysterious and inexplicable?
हमारे ख़ुद के द्वारा पाले गए भ्रम हैं जो हमें ऐसा सोंचने के लिए प्रेरित करते हैं क्योंकि हम योग सूत्र या फिर योग की किसी और विधा को इसके सरलतम स्वरूप में देखना नहीं चाहते.
चलिए योग के उपरोक्त परिभाषा से योग को सरल स्वरूप में समझने का प्रयास करें.
(क्रमशः ............. )
योग-४
चित्त वृत्ति निरोध क्या होता है, यह समझने से पहले चित्त को समझना आवश्यक है.
The sum total of mental stuff is what? जो मन-मस्तिष्क को मात्र विचारों की गठरी (bundle of thoughts) समझते हैं, उनके लिए चित्त क्या होता है , यह समझना कठिन हो सकता है.
चित्त, चेतना, चैतन्य!
इन शब्दों का हम प्रयोग तो करते हैं, लेकिन इसके पीछे कितना बड़ा यथार्थ हमारे सामने होते हुए भी पर्दे में है, यह जान लेना चाहिए.
A very bright young swami, addressed the first International Yoga Convention at Munger in 60s. He greatly impressed me though I was quite young then, in my teens only. He mainly spoke on Chitta , besides distinguishing dhyana from meditation and contemplation . All these were look alikes, at least name or nomenclature- wise but are really poles apart. If not anything else, he awakened great curiosity in me to get some more light from him.
एक ब्रेक के दौरान मैंनें उन्हें प्रणाम किया और इच्छा जताई कि मेरे मन में कुछ प्रश्न हैं जिन्हें वे कृपा कर के हल कर दें. उन्होंने मेरा आशीर्वाद जे साथ स्वागत किया और प्रश्न पूछने के लिए प्रेरित किया.
ये चित्त होता क्या है , मैंने पूछा.
तो उन्होंने सरल भाव से कहा किसे , कैसे, क्या, कौन , कहाँ के चक्कर में क्या पड़ना? सबसे अच्छा होगा, ख़ुद दर्शन कर लो. दर्शन theory को नहीं , आमने सामने , आर पार देखने को कहते हैं .
मेरी जिज्ञासा बढ़ गयी, कि वे कोई चमत्कार करने वाले हैं, शून्य से हटात कुछ प्रकट कर के मुझे दिखाने वाले हैं.
आतुर आँखों से मैं उन्हें देख रहा था, कि अब कुछ हुआ .
और सचमुच हुआ , मेरा सामना चेतना - चित्त की परिभाषा से . वो ऐसे .............
(क्रमशः ......)
योग-५
Swamiji gave me a simple tip, asking me to try it, to directly and without any external aid, discover the meaning of Chitta and also to understand what Maharshi Patanjali implied by the expression 'योगह्चित्त्व्रितिनिरोदह (Yogaschittvritti nirodha). '
स्वामीजी नें मुझसे कहा, कोई भी मंत्र बोलो , जैसे ॐ, सोहम , राम,.............
मैंने उनमें से ही एक चुन लिया, सोहम.
उन्होंने कहा mentally repeat करो , बिना स्वर के , बिना आवाज़ निकाले, बिना जीभ या कंठ में किसी भी प्रकार के कंपन के, कंपन हो तो सिर्फ़ मस्तिष्क में, सोंच में, thought level पर!
यह समझना मेरे लिए कुछ नया नहीं था . मैंने आँखें बंद की और वैसा ही किया जैसा उन्होंने कहा.
आँखे खोल कर मैंने कहा कि स्वामीजी ही गया.
स्वामीजी नें कहा इसे जब ख़ाली हो या ख़ाली नहीं भी हो , अभ्यास करना , किंतु जो असल अभ्यास है चेतना या चित्त से परिचित होने का , वह ऐसे करना, आज रात, और कल सवेरे मुझे बताना अपना अनुभव!
फिर उन्होंने कहा, सोते समय, मंदिल जप ऐसे ही करना, नींद को रोकना मत , जब नींद आए सो जाना , केवल एक बात का ख़याल रखना कि मंदिल जप चल रहा है .
मैंने कहा समझ गया , इसपर स्वामीजी ने कहा एक बात और, जब भी नींद खुले, आधी रात में या सुबह , क्या मस्तिष्क में चल रहा है, नोट कर लेना . बस .
रात वैसे ही बीती और सुबह जब नींद टूटी तो पाया कि दिमाग़ में कुछ और नहीं चल रहा, बल्कि वही मानसिक जप चल रहा था.
मैंने स्वामीजी को दूसरे दिन बता दिया जैसे ही वे मंच से प्रवचन दे कर उतरे.
रात में तो जप तुम कर रहे थे, voluntarily. सुबह जब आँख खुली तो कौन कर रहा था? उन्होंने पूछा , यह जोड़ते हुए कि नींद आने से लेकर जागने तक यह सोहम चालू था , बताओ कौन कर कर रहा था ?
मुझे क्या मालूम , मैंने कहा, कुछ pretend करते हुए क्योंकि कुछ कुछ तो मैं समझ ही रहा था .
यही चित्त है, जो कभी सोता नहीं , बल्कि सुलाता और जगाता है, जो जीव में आत्मा का बाहरी छोर है , उस धागे की तरह जिसके एक छोर को पकड़ कर दूसरे छोर तक पहुँचा जा सकता है.
इसके बाद उन्हें कुछ बताना नहीं पड़ा क्योंकि दूसरे चोर की चर्चा उन्होंने अभी अभी किया था , अपने प्रवचन में .
(क्रमशः .......)
योग - ६
Voluntary और involuntary ही शुरुआत है चित्त सिद्धि की , नहीं तो इसे कम से कम चित्त - की - समझ , की सिद्धि की ही शुरुआत समझ लें .
Mind यानी मन चित्त की ऊपरी परत है . यह हर किसी को दिखाई देती है. एक शांत गहरे झील में एक कंकड़ फेंकें. कई तरंग उठने लगेंगी. अब झील की ऊपरी परत शांत नहीं है , उद्वेलित है. मन भी चित्त की ऊपरी परत पर उद्वेलित होती रहती है, बाहरी और भीतरी प्रभावों से . इसी को कहा गया है चित्त वृत्तियाँ (modifications of mind). यह शांत होता है क्या? आप ख़ुद देख लें.
इसे देखना भी बहुत आसान नहीं, हालाँकि दिखता आसान है. कोशिश कर के देख लें, एक छोटे से प्रयोग कर के .
किसी भी आरामदायक आसन या अवस्था में, चाहे लेट कर या कुर्सी पर बैठ कर , आँखे बंद कर लें.
अब द्रष्टा बन जायँ. ख़ुद के. बंद आँखो के सामने एक tv स्क्रीन है. उसे योग की भाषा में chidakash यानी चित्त का आकाश या space of consciousness कहते हैं .
द्रष्टा भाव से , यानी मात्र एक निरपेक्ष दर्शक की तरह देखना भी सब के लिए आसान नहीं . देखने वाले को पता चलेगा कि यह खोपड़ी जिसे हम prime mover की तरह जानते हैं, वह तो एक chattering box है जहाँ अगर कुछ है तो बस शोर शराबा .
You will find thoughts, better say, train of thoughts, storming the mental space.
(क्रमशः ......)
योग - ७
Voluntary.
इन दो शब्दों को हम हल्के से न लें.
इनमें हमारे कई अनसुलझे प्रश्नों की कुंजी छुपी है, उत्तर निहित है.
ग़ौर से देखें.
सबसे पहले involuntary functions पर विचार करें. हमारे शरीर में involuntary functions वो हैं जो स्वतः घटित हो रहा है. Voluntary वो जिसका संचालन हम अपनी इच्छा से करते हैं.
उदाहरण. हम कुछ खाते हैं . चबा चबा कर. यह voluntary function है . जो खाना खाया, उसका पाचन हमारा system करता है , स्वतः कह लीजिए. इसी स्वतः होने को involuntary कहते हैं.
Voluntary वह है जो हमारे क्षेत्राधिकार में है. हम कैसा भोजन ग्रहण करें , यह हमारे क्षेत्राधिकार में है. उस भोजन का हमारे पाचन प्रणाली पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह involuntary या autonomic system पर निर्भर है .
How do we express this, using scriptural terms?
हम कहेंगे कर्म हमारा क्षेत्राधिकार है, किंतु उस कर्म का फल हमारा क्षेत्राधिकार है ही नहीं.
कर्म voluntary function है जबकि कर्म फल involuntary function hai.
This visibly small reality, holds the key to that which is not hidden, yet is a puzzle that we seek to resolve through misconceived means.
Let see how and to what consequence.
(क्रमशः ...........)
योग-८
भागवत गीता के उपरोक्त श्लोक की विवेचना आदि शंकरचार्य से लेकर गांधी एवं अन्य संतों और महापुरुषों ने इतनी गहराई में किया है कि अब आगे कुछ भी व्याख्या के तौर पर कहना बहुत ही अनावश्यक लगेगा.
इसे विवेचना नहीं, मात्र एक .reference समझ लें, voluntary और involuntary के परिपेक्ष्य में.
ना सिर्फ़ इस श्लोक में, भागवत गीता में अन्यत्र भी ऐसा निर्देश है कि हमारा अधिकार कर्म पर तो है, कर्म फल पर नहीं.
Voluntary action कर्म का सीधा उदाहरण है जिसपर हमारा अधिकार है, किंतु कर्म करने के बाद फल क्या और कैसा हो, यह भविष्य के गर्भ में होता है.
होइहैं वही जो राम रचि राखा.
कहते हैं न , सब नियति का खेल है।
अब ज़रा देखिए. नियति को . छोटे कैन्वस पर.
इस सम्बंध में सुदीप की निम्नलिखित टिप्पणी प्रासंगिक लगती है :-
At the outset he questions whether voluntary can be seen as divorced from involuntary?
"For example, I read bad books, live with bad friends, practice those habits repulsive to co-existence, in the result, my adrenaline gets programmed in that manner by which it produces those harmful enzymes, fluids which in turn dictates my mind to perform all bad action which are repulsive"
He adds, "to cut short a long narration, it may be easily said that the voluntary actions are results of how we programe our mind, and our up-bringing, schooling, teachers, parents, freinds and the society are important contributors to it".
वस्तुस्थिति यह है कि सुदीप में मूल मंत्र ठीक पकड़ा है.
Voluntary और involuntary सम्बंधित हैं , भले ही दोनों अलग अलग हों.
भागवत गीता कर्म को दो स्वरूप में परिभाषित करता है.
एक तो वह जो हम करते हैं , acts of omissions and commissions.
दूसरा वह जो बीज रूप धारण कर लेता है संस्कारों के रूप में . In the form of archetypes.
जो कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग और ऐप्लिकेशन समझते हैं उनके लिए archएtypes को समझना मुश्किल नहीं बल्कि आसान है. Archetype (in Jungian psychology) is defined as a collectively inherited unconscious idea, pattern of thought, image, etc., universally present in individual psyches. Same way as computer and IT technology is founded on basic symbols that stay invidible but constitute prime movers for any program or application. syntaxes, for instance.
(क्रमशः .........)
योग-९
To drive home that what is obvious, let me shoot a poser, even though it might sound childish.
A man jumps into a swollen river. He does not know swimming.
Now predict. What consequence would he meet? Let me cite options.
1. He drowns to death.
2. He is recovered alive , miles away , by providential grace of course,
3. He is rescued to safety by some one who spots him drowning.
These are only some. Options may be even more. Can one vouch against any single, on the premise that the rest must be ruled out?
Obviously, not.
This is about the permutations and combinations that define the vagaries of life.
The wide spectrum that such vagaries constitute , tend to render and introduce too much of divine interventions in life.
In fact, we are prone to shirk against reasoning out seemingly complicated equations of life.
In that regard , divine interventions offer path of least resistance , better say easy escape route.
Yoga as a system, does not countenance such uncalled for escape routes, in preference to the concept that divinity is a wholesome system where rule of law operates, divine interventions being an intrinsic reality as something akin to an operating system.
(क्रमशः .......)
योग-१०
योग voluntary के रास्ते involuntary के inaccessible terrain में दाख़िल होने का एक सरल साधन है. साधन जितना सरल है, साध्य उतना ही दूभर और tough है यदि योग मार्ग को हम आत्मसात करने में विफल रहते हैं तो.
Voluntary और involuntary के बीच अन्योनाश्रय सम्बंध है , यह सब को मालूम है किंतु साधारण तौर पर हमें पता नहीं होता कि इस सम्बंध का हम उपयोग कैसे करें .
Emotions. ग़ुस्सा. ख़ुशी. दुख . प्रतिक्रिया. ऐसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं. ये अनुभव क्या हैं? Voluntary? या involuntary? ग़ुस्से होने के लिए क्या आप ग़ुस्से को आमंत्रित करते हैं या फिर ग़ुस्सा ख़ुद आकर सिर पर सवार हो जाता है? वैसे ही दूसरे emotions, आते हैं और सवारी कर के हमें अच्छे बुरे situation में पहुँचा देते हैं या motivate करते हैं. तो ये voluntary कहाँ हुए.
विचार कर के ख़ुद देख लें, जिसे हम voluntary के नाम से सम्बोधित करते हैं, वो यथार्थ में क्या voluntary है? या फिर involuntary से चालित (driven) या प्रेरित या ....... (कुछ भी ) तो नहीं?
यदि उत्तर सकारात्मक है, जो कि है ही, तो हम आप वास्तव में क्या है? एक biological robot से ज़्यादा? जो involuntary promptings से driven है , यानी नियंत्रण कहीं और है!
किंतु कहाँ?
यह विश्लेषण योग्य विषय है!
योग की प्रासंगिकता यहीं पर है जिसका यहाँ ज़िक्र किया जा रहा है.
(क्रमशः ......)
योग-११
When the body is stressed, muscles tense up. Muscle tension is almost a reflex reaction to stress — the body's way of guarding against injury and pain.
Relaxation techniques have been shown to effectively reduce muscle tension, decrease the incidence of certain stress-related disorders, such as headache, and increase a sense of well-being.
Stress can make you breathe harder. That's not a problem for most people, but for those with asthma or a lung disease such as emphysema, getting the oxygen you need to breathe easier can be difficult.
And some studies show that an acute stress — such as the death of a loved one — can actually trigger asthma attacks, in which the airway between the nose and the lungs constricts.
The heart and blood vessels comprise the two elements of the cardiovascular system that work together in providing nourishment and oxygen to the organs of the body. The activity of these two elements is also coordinated in the body's response to stress. Acute stress — stress that is momentary or short-term such as meeting deadlines, being stuck in traffic or suddenly slamming on the brakes to avoid an accident — causes an increase in heart rate and stronger contractions of the heart muscle, with the stress hormones — adrenaline, noradrenaline and cortisol — acting as messengers for these effects. In addition, the blood vessels that direct blood to the large muscles and the heart dilate, thereby increasing the amount of blood pumped to these parts of the body and elevating blood pressure. This is also known as the fight or flight response. Once the acute stress episode has passed, the body returns to its normal state.
Chronic stress, or a constant stress experienced over a prolonged period of time, can contribute to long-term problems for heart and blood vessels. The consistent and ongoing increase in heart rate, and the elevated levels of stress hormones and of blood pressure, can take a toll on the body. This long-term ongoing stress can increase the risk for hypertension, heart attack or stroke.
Repeated acute stress and persistent chronic stress may also contribute to inflammation in the circulatory system, particularly in the coronary arteries, and this is one pathway that is thought to tie stress to heart attack. It also appears that how a person responds to stress can affect cholesterol levels.
(Cont. .)
योग-१२
In a relaxed state your heart and breathing rated slow, your blood pressure goes down, your production of stress hormones decreases, and your muscles relax. The relaxation response also seems to increase the available level of serotonin, which is a chemical in the body that positively affects emotions and thoughts.
Most of us know but few stay aware of a reality that chemical secretions steer our conduct. The term conduct includes its negative variant as well, I.e misconduct.
How so ever tall one may seem, morally, socially, financially , religiously, politically, or any way likewise, the chemicals that secrete within us in response to any triggers , in fact, drive us to whatever admirable or despicable we do.
Religions do not prescribe these secretion management. Religions do not prescribe evil acts. Religions none the less do not prescribe remedy against such drives.
But yoga does. Yoga does not come in the way of any life style or religious practices, rather it offers firm foundation thereto.
Dos and donts are exclusive province of religions and of puritans, not of yoga. Yoga causes these to sprout from within by involuntary mechanism.
Religions are often cited by collateral religious segments as being reason for social, political and global conflicts . That is so because religions are bereft of a salutary component that may work catalytic agent between what may presently seem poles apart. That component is yoga which is not part of Hindu religion as such, though it is a system which Hindus have preserved and developed down the ages as a scientific system rather than any belief system.
(Cont....)
योग-१३
Belief and assumption.
These terms are important.
Former is a species of science, latter that of religion.
The former prompts a quest, the latter precludes.
Both seem similar as do cheese and chalk, but are materially and substantially distance apart .
Yoga subscribed to assumptions, not to beliefs. An assumption is a temporary belief that reveals the truth assumed but a belief bars s search, thereby rendering revelation out of the question.
(Cont....)
योग-१४
At the root of all our thoughts, emotions and behaviours is the communication between neurons within our brains. Brainwaves are produced by synchronised electrical pulses from masses of neurons communicating with each other.
Brainwaves are detected using sensors placed on the scalp. They are divided into bandwidths to describe their functions
They are ALPHA , BETA, GAMMA , THETA
Our brainwaves change according to what we’re doing and feeling. When slower brainwaves are dominant we can feel tired, slow, sluggish, or dreamy. The higher frequencies are dominant when we feel wired, or hyper-alert.
Delta brainwaves are the slowest but loudest brainwaves (low frequency and deeply penetrating, like a drum beat). They are generated in deepest meditation and dreamless sleep. Delta waves suspend external awareness and are the source of empathy. Healing and regeneration are stimulated in this state, and that is why deep restorative sleep is so essential to the healing process.
THETA WAVES (3 TO 8 HZ)
Theta brainwaves occur most often in sleep but are also dominant in deep meditation. It acts as our gateway to learning and memory. In theta, our senses are withdrawn from the external world and focused on signals originating from within. It is that twilight state which we normally only experience fleetingly as we wake or drift off to sleep. In theta we are in a dream; vivid imagery, intuition and information beyond our normal conscious awareness. It’s where we hold our ‘stuff’, our fears, troubled history, and nightmares.
ALPHA WAVES (8 TO 12 HZ)
Alpha brainwaves are dominant during quietly flowing thoughts, and in some meditative states. Alpha is ‘the power of now’, being here, in the present. Alpha is the resting state for the brain. Alpha waves aid overall mental coordination, calmness, alertness, mind/body integration and learning.
BETA WAVES (12 TO 38 HZ)
Beta brainwaves dominate our normal waking state of consciousness when attention is directed towards cognitive tasks and the outside world. Beta is a ‘fast’ activity, present when we are alert, attentive, engaged in problem solving, judgment, decision making, and engaged in focused mental activity. Beta brainwaves are further divided into three bands; Low Beta (Beta1, 12-15Hz) can be thought of as a 'fast idle, or musing. Beta (Beta2, 15-22Hz) is high engagement or actively figuring something out. Hi-Beta (Beta3, 22-38Hz) is highly complex thought, integrating new experiences, high anxiety, or excitement. Continual high frequency processing is not a very efficient way to run the brain, as it takes a tremendous amount of energy.
GAMMA WAVES (38 TO 42 HZ)
Gamma brainwaves are the fastest of brain waves (high frequency, like a flute), and relate to simultaneous processing of information from different brain areas. It passes information rapidly, and as the most subtle of the brainwave frequencies, the mind has to be quiet to access it. Gamma was traditionally dismissed as 'spare brain noise' until researchers discovered it was highly active when in states of universal love, altruism, and the ‘higher virtues’. Gamma rhythms modulate perception and consciousness, disappearing under anaesthesia. Gamma is also above the frequency of neuronal firing, so how it is generated remains a mystery. The presence of Gamma relates to expanded consciousness and spiritual emergence.
WHAT BRAINWAVES MEAN TO YOU
Our brainwave profile and our daily experience of the world are inseparable. When our brainwaves are out of balance, there will be corresponding problems in our emotional or neuro-physical health. Research has identified brainwave patterns associated with all sorts of emotional and neurological conditions. more...
Over-arousal in certain brain areas is linked with anxiety disorders, sleep problems, nightmares, hyper-vigilance, impulsive behaviour, anger/aggression, agitated depression, chronic nerve pain and spasticity. Under-arousal in certain brain areas leads to some types of depression, attention deficit, chronic pain and insomnia. A combination of under-arousal and over-arousal is seen in cases of anxiety, depression and ADHD. more...
Instabilities in brain rhythms correlate with tics, obsessive-compulsive disorder, aggressive behaviour, rage, bruxism, panic attacks, bipolar disorder, migraines, narcolepsy, epilepsy, sleep apnea, vertigo, tinnitus, anorexia/bulimia, PMT, diabetes, hypoglycaemia and explosive behaviour. more...
ALTERING YOUR BRAINWAVES
By rule of thumb, any process that changes your perception changes your brainwaves.
Chemical interventions such as medications or recreational drugs are the most common methods to alter brain function; however brainwave training is also very effective.
Over the long term, traditional eastern methods (such as meditation and yoga) train your brainwaves into balance. Of the newer methods, brainwave entrainment is an easy, low-cost method to temporarily alter your brainwave state. If you are trying to solve a particular difficulty or fine-tune your brainwave function, state-of-the-art brain training methods like neurofeedback and pEMFdeliver targeted, quick, and lasting results.
(Cont. .)
No comments:
Post a Comment