Monday, 30 May 2016


भागवत गीता - एक अध्याय सम्पूर्ण जीवन का !
१-६
टेढ़ी खीर।
भारत देश है ज्ञानियों का। इसकी तो मिट्टी में ज्ञान बसती है। ऐसा कहने सोचने वालों की कमी है क्या?
नहीं न!
और देखिये, यही ज्ञानी प्रबुद्ध हैं जिनका सोचना है कि श्रीमद्भागवत गीता ग्रन्थ तो महान है, अनुकरणीय भी है, पूज्यनीय भी, लेकिन है टेढ़ी खीर।
ज्ञानियों से विस्मित होकर एक याचक नें पुछा कि क्या गीता श्रोत्र ग्रन्थ है या कुंजिका? याचक विद्यार्थी होने के नाते कुंजिका शब्द का प्रयोग कर रहा था। voluminous text book का संक्षिप्त प्रारूप को कुंजिका कहते है, जिससे परीक्षार्थी सस्ती और टिकाऊ ज्ञान अर्जित कर लेते हैं। किन्तु ज्ञान की रेटिंग में इसे निकृष्ट माना जाता है।
इसी कारण, प्रश्नकर्ता से सारे ज्ञानी-प्रबुद्ध गुस्से में उसे भगा देते, उत्तर दिये बिना।
यही प्रश्न उसने एक दिन एक संत से पुछा, तब उसे मिला अपना उत्तर।
(आगे और.......)

उनका भगवान भला करें 
संत नें भगवतगीता को सरल भाषा में समझने के लिए एक श्लोक पढ़ा जिसे युवक ध्यान लगा कर सुन रहा था:-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
संत ने पुछा, समझे?
युवक बोला, कुछ भी नहीं समझ।
संत ने कहा, तो सुनो इसका आशय, और उसके बाद धाराप्रवाह बोलते गए, आधे घंटे, इस तरह:-
असद ख्यि लक्जग ओयुवब क्कुग्गूओ ब्सीगजय म्ब्वकन क्खगफ ववह ब्जंगफ जसफग यत्व्ह् वफहज ...............
आधे घंटे के बाद युवक को यह पता नहीं था कि वह होश में है या बेहोश। संत के शिष्यों नें उसकी यह अवस्था देखी, तो उसे ठंडा पानी पिलाया और कुछ देर पंखे में लिटा दिया।
जब युवक कुछ स्थिर हुआ तो उसे पुनः संत के सामने बिठा दिया गया, पर अब वो शांत बैठा था मनो उसके सारे प्रश्नों का समाधान तो मिला नहीं किन्तु सारे प्रश्न ही दिमाग से गायब हो गए, पूछने के लिए जैसे बचा ही न हो, कुछ भी।
अब समय था उलटा। प्रश्नकर्ता थे संत, उत्तर मांग रहे थे उसी याचक से जो खुद भ्रमित था।
संत नें पुछा श्लोक अब हलका लग रहा या भारी?
युवक ने बोला, भारी? अब तो भारी शब्द का भी वजन हलका लग रहा है। पहले तो ऐसा था कि संस्कृत नहीं समझ रहा था, हिंदी रूपांतरण ही काफी होता। किन्तु आपके व्याख्यान के बाद लग रहा है कि समझने के लिए जिस मशीन को दिमाग कहते हैं, वही कहीं गायब हो गया, माथा सुन्न हो गया।
तुम और तुम्हारे जैसे इसी लायक है, संत ने कहा, यह समझाते हुए कि गीता खुद ज्ञान का शार्ट नोट है, जिसे युद्ध क्षेत्र में यानी आपादकाल में pre-existing tenets को आसान बना कर, संक्षेप में दिया था, तुम्हारे जैसे विद्वान से दिखने वाले ऐसे व्यक्ति को जो सिर्फ मूर्ख ही नहीं, बल्कि था पूर्णतः भ्रमित , विक्षिप्त, विस्मित, ..............
तो अब बताओ, जो शार्ट नोट्स कुंजिका, खुद भगवान नें वाचा , उसका शार्ट नोट्स जो ढूँढ़ते हैं या इस सम्बन्ध में मार्ग दर्शन ढूँढ़ते हैं या यह सोचते, सुनते ,बोलते , पूछते हैं कि गीत क्या टेढ़ी खीर, उनका भगवान भला करे।
   
3
स्कूल में भागवत गीता पढाई जाती थी।
परीक्षा मौखिक होती थी। प्रश्न पुछा गया, गीता में कितने अध्याय?
एक जोड़ अठारह भाग दो बराबर साढ़े नो।
शिक्षक ने बिगड़ कर पुछा, तुमसे क्या गणित पुछा जा रहा जो औसत निकाल रहे?
जवाब आया, नहीं सर, क्षमा करें तो कुछ कहूँ।
बोलो, शिक्षक ने बोला।
विद्यार्थी बोला, सर, भगवान नें जब अर्जुन से बोला था तब तो अध्याय एक ही था, अठारह तो योग बताये थे, हर योग को पब्लिशर/प्रकाशक नें अध्यायों में बाट दिया, व्यवहारिकता को ध्यान में रख कर।
तो सर ,यदि मैं सिर्फ एक बोलता तो आप फेल कर देते, अठारह कहता तो भगवान, इसी लिए सारे पत्ते खोल कर रख दिए, विद्यार्थी नें भोली आवाज़ में हाथ जोड़ कर उत्तर दिया।
शिक्षक बायीं हाथ से सर खुजला रहे थे, दायें से मार्क शीट लिख रहे थे,
10/10- examinee better than examiner!
Examinee is better than the examiner?
परीक्षा नियंत्रक को यह बात पची नहीं, Examinee is better than the examiner? ये कौन दूसरा पैदा हो गया डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ? उन्होंने परीक्षक को तुरंत तलब किया और पूछा कि ये क्या लिख दिया? परीक्षक नें विद्यार्थी को मेधावी बताया और अनुरोध किया कि नियंत्रक भी ख़ुद साक्षात्कार कर के परीक्षा ले लें.
नियंत्रक कुछ सकपका गये, क्योंकि वे हिन्दू धर्मलम्भी नहीं थे और न ही उन्हें गीता के विषय में प्रश्न पूछने लायक ज्ञान नहीं था. तो निदान उन्होंने ऐसे निकला कि परीक्षार्थी को बुलाया और परीक्षक समेत उसे प्रधान अध्यापक के पास ले गये और अपना पल्ला झाड़ कर सारी बातें उनके समक्ष रख दिया.
प्रधान अध्यापक बड़े भारी पूजेरी थे, उनकी ललाट गहरे चंदन के टीके से शोभायमान रहती थी.
उन्होंने विद्यार्थी को नहीं, परीक्षक को पहले हाथो हाथ लिया. उनसे बोला कि आज से आप दाख़िला ले कर क्लास में बैठेंगे, पढ़ाई करने और वो जो better than examiner hai आपको पढ़ायेगा. परीक्षक-शिक्षक बेचारे नये थे, कुछ नहीं बोले, सिर्फ़ सुनते रहे.
अब बारी थी उस better than examiner की जो निरपेक्ष भाव से सब देख समझ रहा था.
प्रधान अध्यापक ने पूछा, क्या पूछा था तुमसे और क्या उत्तर दिया था उसका?
बालक ने सरल शब्दों में बता दिया,  प्रश्न पुछा गया था कि गीता में कितने अध्याय? जवाब था एक जोड़ अठारह भाग दो बराबर साढ़े नो।
जिसपर शिक्षक ने बिगड़ कर पुछा था , तुमसे क्या गणित पुछा जा रहा जो औसत निकाल रहे?
तो जवाब दिया था , नहीं सर, क्षमा करें तो कुछ कहूँ।
जिसपर  शिक्षक ने बोला , बोलो !
तब कहा था  सर, भगवान नें जब अर्जुन से बोला था तब तो अध्याय एक ही था, अठारह तो योग बताये थे, हर योग को पब्लिशर/प्रकाशक नें अध्यायों में बाट दिया, व्यवहारिकता को ध्यान में रख कर।
तो सर ,यदि मैं सिर्फ एक बोलता तो आप फेल कर देते, अठारह कहता तो भगवान, इसी लिए सारे पत्ते खोल कर रख दिए थे , विद्यार्थी नें भोली आवाज़ में यहाँ भी उसी तरह हाथ जोड़ कर उत्तर दिया जैसे मौखिक परीक्षा में दिया था .
समझा इस नक़लची की हरकत, तुम नक़ल कर रहे ?  शर्ट कट में ब्रह्मांड का चक्कर लगा कर? अच्छा चलो, तुम्हें माफ़ कर दूँगा अगर तुम ये बता दो कि किसने शॉर्ट कट लगाया था , जिसकी तुमने नक़ल उतरी?
गणेशजी सर, लेकिन नक़ल नहीं उतरी मैंने किसी की, वो तो आपके बोलने पर याद आया TV सीरीयल का वो एपिसोड जिसने गणेश जी तीन चक्कर लगा रहे थे जब कि उनके भाई पूरे ब्रम्हाण्ड की ख़ाक छान रहे थे.
समझा, TV देख कर जवाब दिया था गीता के अठारह अध्याय पर?
नहीं सर, मुझे किसी ने नहीं बताया कि कोई सीरीयल अठारह अध्याय पर भी चल रहा है, कौन से चैनल पर सर?
Shut up! तुम्हारा viva चल रहा है TV पर कोई चर्चा नहीं जिसमें तुम एक्स्पर्ट .
सारी सर, विद्यार्थी ने चुप्पी साधते हुए कहा.
फिर मार्क sheet पर नज़र दौड़ाते हुए प्रधान अध्यापक नें खिल्ली उड़ाते हुए कहा, अच्छा इस फ़ेल परीक्षार्थी को highest नम्बर दिया है? चलो तुम्हें पास मार्क्स देता हूँ, फ़ेल नहीं करूँगा, इस शर्त पर कि तुम फटा फट बोल दो , बिना हकलाये, गीता के अठारह अध्याय के नाम.
एक विषाद योग , दो सांख्य योग , तीन  Karma Yoga
रुक , रुक , रुक .....    प्रधान अध्यापक गरजे, विद्यार्थी की धाराप्रवाह को ब्रेक लगते हुए , और ऑर्डर दिया कोने में दुबके बेचारे डाँट खाये शिक्षक को, देख क्या रहे आँखें फाड़ कर, जाइए दौड़ कर, ले आइये गीता, देखूँ तो कि कहीं यह नक़लची हमें धोखा तो नहीं दे रहा.
तपाक एक आवाज़ आयी मासूम सी, उस बच्चे की, 'लीजिए सर', और उसके हाथ में एक हथेली के नाप की गीता थी .
समझा समझा, ये तो सच में नक़लची है. आपने चेक किया था , जब मोख़िक परीक्षा ले रहे थे तब इसकी जेब में ये पुस्तक तो नहीं थी?
शिक्षक चुप थे, लेकिन बालक बोल पड़ा, थी सर, हर समय रहती है.
देखो इसकी धृष्टता, पराधनध्यापक ने कहा, पूछते हुए कि बताओ.........
(आगे और....)


बताओ.........
प्रधान अध्यापक कुछ कर्कश स्वर में पूछे ,
कौन देता है ? तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का फल?
ख़ुद.........  , बालक नें मुँह खोला नहीं कि प्रधान अध्यापक बरस पड़े , ऐसे ,
'बदतमीज़ , मुझे क्या वो समझा है, कि बेवक़ूफ़ बना लोगे?', उन्होंने ऊँगली तान दी कोने में दुबके शिक्षक की ओर जिसे उन्होंने पहले ही डीमोट कर दिया था, शिक्षक से शिक्षार्थी बना देने का ऐलान कर के.
'सवाल पूरा हुआ नहीं, कि होंठ फड़ फाड़ने लगे'
आगे कहा, 
तुम्हें तीन विकल्प दे रहा हूँ, क्योंकि बच्चे हो. सही विकल्प चुनो. इसे कहते हैं अब्जेक्टिव क्वेस्चन. B.Ed. में पढ़ा था. बग़ल में बैठे परीक्षा नियंत्रक admiration की मुद्रा में होंठों पर हँसी बिखेर रहे थे , दुबके शिक्षक को देख, दाँत चबा चबा कर.
 उन्होंने विकल्प दिया, ऐसे,
१. कर्म फल हमें हमारा भाग्य देता है;
२.कर्म फल हमें भगवान देते हैं;
३.कर्म फल हमें कोई और देता है.
बोलो , १,२ या ३? प्रधान अध्यापक नें पूछा.
३, प्रॉम्प्ट उत्तर.






हथेली के नाप की गीता , बच्चें नें पॉकेट से निकला. अपने शिक्षक को, जो प्रधानअध्यापक की डाँट के बाद कोने में दुबके पड़े थे, दौड़ से बचाने. उन्हें गीता की एक कापी लाने का आदेश दिया गया था . प्रधानअध्यापक को सवालों की झड़ी जो लगानी थी, examinee better than examiner वाली रेटिंग को झुठलाने. 
तो प्रधानअध्यापक ने कुछ कर्कश स्वर में यूँ पूछा, बताओ ;
कौन देता है ? तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का फल?

'ख़ुद......... ' , बालक नें पूरा मुँह खोला भी नहीं था कि प्रधान अध्यापक बरस पड़े , ऐसे :-
'बदतमीज़ , 
मुझे क्या वो समझा है, कि बेवक़ूफ़ बना लोगे?', 
उन्होंने ऊँगली तान दी कोने में दुबके शिक्षक की ओर जिसे उन्होंने पहले ही डीमोट कर दिया था, शिक्षक से शिक्षार्थी बना देने का ऐलान कर के.

'सवाल पूरा हुआ नहीं, कि होंठ फड़ फाड़ने लगे'

आगे कहा, 

तुम्हें तीन विकल्प दे रहा हूँ, क्योंकि बच्चे हो. 
सही विकल्प चुनो. 
इसे कहते हैं अब्जेक्टिव क्वेस्चन.
 B.Ed. में पढ़ा था. 
बग़ल में बैठे परीक्षा नियंत्रक admiration की मुद्रा में होंठों पर हँसी बिखेर रहे थे , दुबके शिक्षक को देख, दाँत चबा चबा कर!

 उन्होंने विकल्प दिया, ऐसे,

१. कर्म फल हमें हमारा भाग्य देता है;
२.कर्म फल हमें भगवान देते हैं;
३.कर्म फल हमें कोई और देता है.

इसके बाद प्रधान अध्यापक बोले,
अब बोलो ,
 १,२ या ३? 
प्रधान अध्यापक नें पूछा भी नहीं था पूरा, कि बालक चहक पड़ा, सरल भाव से,

तीन! सर!
 प्रॉम्प्ट उत्तर. लेकिन बिलकुल ग़लत, प्रधान अध्यापक उबाल पड़े, और पूछा, साबित करो, कहाँ लिखा है, किसने बोला ऐसा.

बालक बोला, साबित तो अभी का अभी कर दूँ , यदि आज्ञा दें तो.

तो करो! प्रधान अध्यापक नें कहा. 

बालक बोला, सर हम अभी तीन मंज़िले पर हैं. यदि यहाँ से कोई नीचे कूदे, तो यह उसका कर्म हुआ. उस कुदान का फल उसी के कर्म देंगे, कर्म यानी कुदान. तो सर मेरा उत्तर जिन्हें ग़लत लगता हो वो अभी के अभी छलाँग लगा कर देख लें कि फल उस कर्म का, छलाँग लगाने का, कौन देता है, भाग्य, भगवान या वही कर्म यानी तीसरे मंज़िल से लगाई गई छलाँग!
प्रधान अध्यापक और परीक्षा नियंत्रक एक दूसरे का मुँह ताक रहे थे, और कोने में दुबका डाँट खाया शिक्षक से शिक्षार्थी में डीमोटेड शिक्षक रीढ़ सीधी कर तन गया था और परीक्षार्थी-विद्यार्थी इंतज़ार कर रहा था अगले प्रश्न का जो मिनटों के इंतज़ार के बाद भी क्यों नहीं आ रहा, उसकी समझ नहीं आ रहा था.

(आगे और....)




Sent from my iPhone

No comments:

Post a Comment