Saturday, 29 August 2015

बात यहाँ से निकली कि बुद्धिजीवी कौन , तो मेरे एक मित्र ने उलटे पूछ दिया , बुद्धि मायने क्या?
मै बड़े सोंच में पड़ गया. कभी सोंचा नहीं था कि कोई कभी ऐसा बेतुका प्रश्न पूछेगा , यह जानते हुए भी कि हर सवाल का जवाब नहीं होता है, क्योंकि अगर होता तो बताइए कि जितने प्रश्न मोदी से पूछे जा रहे है क्या उसके आधे भी नेहरु , इंदिरा, राजीव, देवेगौडा , गुजराल , मनमोहन सिंह से साल सवा साल के भीतर पूछे गये थे क्या. नेहरु का नाम तो गलती से ले लिया. उनके लिए तो भारतीयों ने आजन्म दूध भात लिख दिया है, हमें मुफ्त में स्वतंत्रता, भारत को बटवारा और खुद को सत्ता का असीम दुख दर्द देकर जो उनका वंश आज तक भारतीयों के दर्द को साझा करने के लिए झेल रहा है, इंदिरा और राजीव के प्राण गवां कर .

तो बेशर्मो की तरह मैंने तो पूछ ही दिया, अपने मित्र से जो मनोविज्ञान के पण्डित हैं.
अब बता भी दीजिये, बुद्धि किसे कहते हैं, मैंने झिझक ताके पर रख कर पूछ ही दिया.
तो लो , उत्तर सुन लो. उन्होंने उलटे मुह दूसरा सवाल दाग दिया , ‘दिगंबर साधू ‘ किसे कहते है?
साधू जो निर्वस्त्र हो , नंग धरंग. ये कौन नहीं जनता, मैंने भी उल्टा सवाल दाग दिया, उन्ही की तरह और मूंचो को तलाशते हुए होठों के ऊपर हाथ फेर कर शर्मिंदगी झेल ली , क्योंकि बाद में अहसास हुआ कि मेरी तो मूंछे है ही नहीं.
खैर, अपनी वीरता पर दीवाना मैं, अपने मित्र के चेहरे पर मुस्कुराते हुए नज़र गडाए था. किन्तु देखा कि वे उल्टा यूं मुस्कुरा रहे थे मनो वो नहीं , मैं ही हार गया.
ताज्जुब तब हुआ जब चहक कर उन्होंने कहा, ‘गलत, बिलकुल उलट’
कैसे, मैंने पुछा ?
तो उन्होंने कहा, दिगम्बर यानि इतने पोशाक जितने हम आप पहन क्या पहनने की कल्पना भी नहीं कर सकते, वो अम्बर जिसकी दिशाए अम्बर हो , वो दिगंबर .
अब मैं हांफ रहा था, हाथ भी जोड़े हुए था, पूछ रहा था, नहीं नहीं, सविनय निवेदन कर रहा था कि गुरुदेव, इसके बाद मेरे छोटे से प्रश्न का तो उत्तर दे दो, कि बुद्धि क्या होती है जिसके उपर बुद्धिजीवी महले दोम्हले खड़े कर लेते हैं.
जो उत्तर उन्होंने दिया, उसके बाद कोई प्रश्न बचा नहीं. उन्होंने बुद्धिजीवी बन जाने का बड़ा ही सरल मार्ग समझा दिया. आप भी समझ लें .
पान का एक बीड़ा मुह में रख लो, पान का एक बीड़ा अपनी खिलबट्टी से निकाल कर बढ़ाते हुए उन्होंने खुद मेरे मुह में डाल दिया. और बोला , इसे मुह में पड़ा रहने दो. चबाओ मत. फिर कोई और बात निकल दी , और कुछ मिनट यूंही गुज़र गये, फिर उन्होंने मुझसे एक छोटा प्रश्न पुछा , जिसका उत्तर मैंने दे तो दिया किन्तु बोलने में कुछ कठिनाई हुई क्योंकि मुह आधा भरा हुआ था.
कठिनाई हो रही है, उन्होंने पुछा, मैंने कहा हाँ , मुह में पान कि पीक ......  , और दो चार टपक भी गये, रोकते रोकते भी.
लेकिन जब पान मुह में डाला था तब तो मुह खली था, पीक तो था नहीं, तो आ गया कहाँ से.
मैं क्या जवाब देता, इतने में जवाब देने से मुह खुद जवाब दे रहा था. बस ऊं आं में इशारों से कुछ बोल लिया और इंतजार किया कि वो कुछ बोंले.
बुद्धि, intellect , पान के इस बीड़े की तरह है. पान खाया करो, सीख जाओगे कि कैसे एक विचार को पान के बीड़े कि तरह दिमाग में तैरने के लिए छोड़ दो, जैसे, मोदी, मोदी सुरक्षा , नितीश, लालू , सोनिया, नेहरु ,   और फिर देखो जो पीक विचारों से विचारों का तैयार होता हैं उसी को बुद्धिजीवी कि खेती कहते हैं. इस फसल को कुछ अच्छी कुछ बुरी फसल कहेंगे. बस घबराना नहीं. अच्छी बुरी , जैसी हवा निकले , निकलते जाओ , सूंघने वालों को बकने दो, कोई सेंट बोलेंगे कोई बदबू . दुनिया ऐसे ही चलती है.
कायदे से मैं उठ कर प्रणाम कर लौट जाता, किन्तु इस बार मैंने साक्षात् दंडवत किया और तब से मैं फेस बुक के कई मित्रों को ढूँढ रहा हूँ, साक्षात्, दंडवत करने हेतु.

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