Saturday 14 May 2016

धर्म यानी?
न रिलिजन , न सम्प्रदाय और न हि मँजहब!
जैसे , जुरिस्प्रूडेन्स यानी क़ानून का क़ानून या क़ानून का ग्रामर या क़ानून का विज्ञान या फ़लसफ़ा/दर्शन , क़ानून को दो ब्रॉड कैटेगॉरी में परिभाषित करता है. एक तो वो जिस कैटेगॉरी में आप भोतिक शास्त्र के सिद्धांतों को रखेंगे, जैसे newtons law. दूसरा जिसमें आप सिवल या क्रिमिनल प्रसीजर कोड को रखेंगे जिनके आधार पर न्यायालय चलते हैं.
ठीक वैसे ही, रिलिजन , सम्प्रदाय और मँजहब धर्म हैं जैसे newtons law भी क़ानून नहीं होते हुए भी क़ानून है, न मानव निर्मित और न न्यायालयों को चालित करने वाला, जैसे कि क़ानून की स्पेसिफ़िक परिभाषा से सम्मत क़ानून , penal code, transfer of property act, इत्यादि!
धर्म का असल अर्थ होता है प्रकृति. कम्प्यूटर की भाषा में इसे कहते हैं प्रॉपर्टी यानी गुण. 
गुण की पाराकाष्ठl और उन्हीं गुणों की सबसे कलुषित या नीच अवस्था या कहें अवगुणों की हद उसी की विपरीत अवस्था को दो बिंदु मान लें. इन्हीं दो बिंदुओं के बीच मनुष्य हों या कोई और जीव, कर्मों का सम्पादन जीवन में होता है. कर्मों का उत्कर्ष ही धर्म है , यानी धर्म कर्म की एक अवस्था का नाम है जिसे गुणी ज्ञानियों नें समय समय पर प्रिस्क्राइब किया है जो बन गया बिलीफ़ सिस्टम, यानी रिलिजन , सम्प्रदाय और मँजहब।
ये सारे नाम धर्म की परिभाषा के सबॉर्डिनट होते हुए भी धर्म ही कहलाते हैं जिसका मूल तत्व है प्रकृति के अनुरूप उत्कर्ष कर्म की प्राप्ति. 
कम्प्यूटर युग में इस बात को समझना आसान हो गया है किंतु हमारी दृष्टि यदि रिलिजन , सम्प्रदाय और मँजहब की चहारदीवारी से बाहर झाँक सकने के क़ाबिल हो तब न!

कम्प्यूटर की अपनी ख़ुद की प्रकृति, प्रॉपर्टी, कपैसिटी होती है, लेकिन कम्प्यूटर भी तो मात्र एक डिब्बा है, बिना उन आवश्यक सहायता के, जिसे हम हार्डवेयर , सॉफ़्ट वेयर , ऐक्सेसरीज़, अटैचमेंट , नेट कॉनेटिविटी आदि कहते हैं.
एक शुद्ध कम्प्यूटर की तुलना एक साफ़ सीधे सच्चे इन्सान से कर सकते है. इसकी आप कितनी भी प्रशंसा कर लें, जो प्रशंसा के योग्य है भी, तो भी इसकी उपयोगिता एक डिब्बे से ज़्यादा है क्या?
यानी, शुद्ध-साफ़ व्यक्तित्व प्रशंसा के योग्य हो सकता है लेकिन, उपयोगिता के बिंदु पर आप इसने कमी पाएँगे, हार्डवेयर , सॉफ़्ट वेयर , ऐक्सेसरीज़, अटैचमेंट , नेट कॉनेटिविटी आदि की.
यदि आपने इस अनैलॉजी को आत्मसात कर लिया, तो आपके लिए आसान हो जाएगा योग और तंत्र के सिद्धांत तथा विधाओं को समझना .  
ये विधाएँ जादू टोंना नहीं और न हि साँप सँपेरे का खेल. ये विधाए हैं उस कम्प्यूटर को manage करने का उपक्रम , जो मनुष्य को उस नीली छतरी वाले नें दिया है, जिसका उपयोग करने के बजाय हम उसे वाइरस ग्रसित करते फिरते हैं . 
ये विधाए बिलीफ़ सिस्टम नहीं, वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप और कम्प्लाइयंट होते हैं.
 बिलीफ़ और assumption दो अलग मान्यताएँ हैं. पहला विज्ञान को मान्य नहीं, दूसरा है.
Assumption टेम्परेरी यानी अस्थायी बिलीफ़ को कहते हैं जो एक समय सीमा के अंदर साबित हो जाना चाहिए, अन्यथा उसे ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए.
Algebra और geometry में assumption का यही फ़ार्मुला हम लगते हैं किसी फ़ॉर्म्युला या theorem को साबित करने . साबित हुआ तो उसे वैज्ञानिक मान्यता दी जाती हैं नहीं तो मान लिया जाता है कि सिद्धान्त ग़लत यानी अमान्य है.
योग -तंत्र उसी assumption के सिद्धान्त पर आधारित है, न कि किसी रूढ़िवादी बिलीफ़ सिस्टम पर.

That's not my cup of tea!

मैंने १९६३ में योग-तंत्र की सारी विधाओं को सिस्टमैटिक्ली सीखा था ख़ुद परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती से . क्रिया योग भी उनमें एक था.
मेरे सिस्टम में योग-तंत्र किसी गुप्त परम्परा का हिस्सा कभी नहीं रहा है. 
मेरा यह भी मानना है कि जो गुप्त है, वह महान परम्परा तो हो सकती है, पर विज्ञान कभी नहीं.
स्वामीजी के सानिध्य में योग-तंत्र को मैंने विज्ञान के रूप में आत्मसात किया है, जिसमें जो गुप्त है वह.......  That's not my cup of tea!

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