Saturday 29 August 2015

बुद्धिजीवी कौन ? वो जिनके जीने का आधार बुद्धि या फिर वो जिनके जीविका का आधार बुद्धि?
लगता है ,ये दोनों ही परिभाषा आज के परिपेक्ष्य में सही है. इसका प्रमाण फेस बुक पर देखने को मिलता है , भरपूर.
कैसे कैसे प्रश्न उठाये जाते हैं, ज़रा देखे.
मैं ऐरे गैरों की बात नहीं कर रहा. उनकी कर रहा हूं जिन्हें आप हम माने ना माने , खुद को वे प्रकाण्ड पण्डित समझते हैं.
उदाहरण सामने है.
नरेन्द्र मोदी उनके लिए चिंता का विषय हैं.
या यूं कहिये, उन्हें चिंता है कि उनके सिक्यूरिटी के लिए इतने इंतजामात आखिर क्यों?
भले ही बोंले नहीँ , सोचने का अंदाज़ यह है कि आखिर इंदिरा गाँधी भी तो शहीद ही हुईं थी , और राजीव भी, तो ये क्यों नहीं. क्या होगा? ज्यादा से ज्यादा ? यही न कि लाखों लाख चाय बेचने वालों में एक खर्च हो जायेगा?
उनके सोंच से , खास कर , उनके अव्यक्त सोंच से मेरे जैसे कम समझ वाले सहमत हों न हों, प्रभावित तो हैं ही . तो हमने विचार किया कि क्यों नहीं मोदी को हम सब मिल कर कुछ अच्छी सलाह दे डालें, ताकि उनके भागलपुर आगमन का लाभ कम से कम उन्हें, यानी मोदीजी को तो मिल ही जाये , क्योंकि जुमलों से हमें तो कुछ मिलेगा ही नहीं  क्योंकि नितीश मिलने देंगे नहीं, पर अगर कुछ लाभ उस पानी के तरह मिल भी जाये जो बरसाती बोहे की तरह खेतो को स्वतः सींच देता है , तो भी , लालूजी हमे समझा देंगे कि इसमें केंद्र सरकार का नहीं बल्कि राबड़ी सरकार की बची खुची मेहेरबानी है . और जो सिर पहले से स्वीकारुक्ति में झूल रहा है उसे इस बात को समझाने की आवश्यकता थोड़े ही पड़ेगी.
चलिए, विचार किया जाये कि सलाह क्या देनी है मोदीजी को.
सर्व प्रथम उन्हें नेहरु जैसा बनने की सलाह देनी चाहिए. उन्हें अपना और देश के समय की बचत करनी चाहिए.
नेहरु की तरह उन मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र के हवाले कर देना चाहिए जो नेहरु से लेकर मनमोहन ने खड़ा किया या पाला पोसा.
आखिर नेहरु एक अकेले ऐसे कद्दावर भारतीय प्रधान मंत्री हुए जिनके एहसानों के आगे देश का सिर कमर सब झुका हुआ है, तो क्यों नही कश्मीर समस्या को नेहरु फार्मूले पर सुलझा ही लिया जाये? नेहरु कश्मीरी पण्डित थे, कोई मुसलमान थोड़े ही, जो उन्होंने प्लेबीसाईट  के लिए हामी भर दी थी, वो भी कोई sandys compound के चुनावी मंच से नहीं, UN में , क्योंकि कश्मीरी और कश्मीरी पण्डित क्या , शेख अब्दुल्ला खानदान से खून के रिश्ते से भी करीबी रिश्ता रखने वाले नेहरु को कश्मीरियो के नब्ज़ की असली पहचान है. वे मोदी के माफिक प्रधान मंत्री थोड़े ही थे जो दिवाली में बाढ़ का आनंद लेने कश्मीर पहुँच कर समय नष्ट करते, कश्मीर जा कर वे कश्मीर का लुत्फ़ क्या होता है इस बात से अपना परिचय कराया करते थे, ताकि कश्मिरिओ की सोंच से वे वाकिफ राह सके.
नेहरु ने जैसे चीन के साथ मित्रता निभाई, मोदी को चाहिए कि वैसे ही पाकिस्तान चीन सब के साथ निभानी चाहिए. ये क्या सीमा पर रोज़ रोज़ पटाखेबाजी करवा रहे हैं. जंग छेद दे, और सेना के हाथ में बन्दूक की जगह लाठी थमा दे. दुश्मन को जो चाहिए, एक बार में ले लेगा और बस, पठाखेबाज़ी की फिर क्या आवश्यकता पड़ेगी? फिर शायद नेहरु से भी बड़े शांति के दूत कहलायेंगे मोदी.
और इसके बाद भी बहुत कुछ है जो मोदी को करना चाहिए, जैसे अपनी security का जिम्मा नितीश पर छोड़ दे , केवल उनसे यह कसम ले लें कि गाँधी मैदान जैसा हमला अबकी जब करवाएं तो उस वक्त मोदी की मौजूदगी अवश्य रहे.
अलावे इसके, सोनिया को लीडर ऑफ़ opposition का दर्जा तो दे ही दे , सोनिया को अपना मुख्या सलाहकार भी मान ले.
ताकि  हमारे बुद्धिजीवी गाना गायेंगे , ‘तुम्हारी भी जय जय , हमारी भी जय जय, न तुम जीते , न हम हर

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