Saturday 29 August 2015

मुकुटधारीजी के पोस्ट से गुरूजी याद आ गए,  वरीय अधिवक्ता और लॉ  टीचर  सतीश प्रसाद दुबे.अब वे हमारे बीच नहीं है, सिर्फ उनकी याद है. अक्सर शाम में मै उनके यहाँ चला जाता था. शिव शंकर सहाय रोड के दक्षिणी छोर स्थित अपने चैम्बर में वे बैठे मिलते थे, दरवाज़े खिड़कियां खोले, बगल गंदे नाले से मच्छरों को न्योता देते.
आष्चर्य से मैंने एक दिन पूछ दिया, सर ये क्या केर रहे हैं, हम लोग जिनसे बचने के लिए इतने जातन करते हैं, उनको आप न्योता देते हैं.
हँस्ते हुए उन्होंने सामने के टेबल पर रखे लोहे के स्टैंड को दिखाते हुए कहते हैं, इसे बताओ ये क्या है?
मुझे क्या पता, मैने कहा.
तब उन्होंने दिखाया, वह क्या था, एक अद्भुत मोमबत्ती स्टैंड, जिसमे लौ के लेवल पर एक स्टील प्लेट था जिसे ऊपर नीचे किया जा सकता था ताकि मोम्बत्ती के लौ के अनुरुप उसे एडजस्ट किया जा सके. और उस छोटे से स्लाइडिंग प्लेट पर गुड नाईट का मैट रखा होता था.
यह था गुरूजी का 2 in one. जब बिजली ग़ुम तो रौशनी तो गायब साथ बिजली पर चलने वाला गुड नाईट भी ग़ुम. तो गुरुजी ने दोनों का इंतेज़ाम यूं केर लिया, लेकिन असल बात तो रह ही गयी, मच्छरों को न्योता वाली.
इसपर उन्होंने बताया की शाम के बेला में वे मच्छरों को कमरे में ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में जमा करने के बाद, दरवाज़े खिड़की बन्द कर देते हैं ताकि गुड नाईट का भरपूर उपयोग हो सके.
मज़ाकिया अंदाज़ में उन्होंने कहा कि देख लो अब तो मच्छर भी होशियार हो गए हैं, कुछ ही बेवकूफ़ बचे हैं जो निमंत्रण स्वीकार केर रहे हैं, क्योकि ज़्यादातर पड़ोस के घर को प्रेफर करने लगे हैं.
तो अगर मच्छर मक्खियों को फेस बुक पर धुर छी करेंगे तो उनको पहचानेंगे कैसे और इलाज भी.
गलत कहा क्या?

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